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अधीर कम जाना / प्रेमलता त्रिपाठी

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मन स्वतः कर अधीर कम जाना।
हो न यों ही निराश थम जाना।

आँधियों के अधीन हम हों क्यों,
सह उन्हें भी समीर सम जाना।

पत्थरों की बिसात ही क्या है,
पाँव को कर प्रवीर जम जाना।

बाजुओं के सदा बली हैं हम,
खींच कर अब लकीर दम जाना।

अरि अराजक सभी रहें कातर,
है कठिन मार्ग पर न क्षम जाना।

प्रेम मधुवन खिले सदा अपना,
आँसुओंअब तुम्हें सनम जाना।