भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधूरा घोंसला / क्रांति

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने जब पकड़ा था चिड़िया को
उसकी चोंच में कुछ तिनके थे
और पेड़ पर लटका था
उसका अधूरा घोंसला।

चिड़िया गिनती नहीं जानती
इसलिये बरसों का हिसाब नहीं रखती
पर एक बात वह समझती हैं कि
जब वह नई-नई पिंजरे में बंद हुई थी
आँगन में खूब धूप आती थी
और दूर दिखाई देता था उसका पेड़।

चिड़िया के देखते ही देखते
हर ओर बड़ी-बडी़ इमारतें खडी हो गई
जिनके पीछे उसका सूरज खो गया
और खो गया वह पेड़ जिस पर
चिड़िया एक सपना बुन रही थी

चिड़िया की आँखों मे
रह-रह कर घूमता है
अपना अधूरा घोंसला।