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अधूरा घोंसला / क्रांति
Kavita Kosh से
तुमने जब पकड़ा था चिड़िया को
उसकी चोंच में कुछ तिनके थे
और पेड़ पर लटका था
उसका अधूरा घोंसला।
चिड़िया गिनती नहीं जानती
इसलिये बरसों का हिसाब नहीं रखती
पर एक बात वह समझती हैं कि
जब वह नई-नई पिंजरे में बंद हुई थी
आँगन में खूब धूप आती थी
और दूर दिखाई देता था उसका पेड़।
चिड़िया के देखते ही देखते
हर ओर बड़ी-बडी़ इमारतें खडी हो गई
जिनके पीछे उसका सूरज खो गया
और खो गया वह पेड़ जिस पर
चिड़िया एक सपना बुन रही थी
चिड़िया की आँखों मे
रह-रह कर घूमता है
अपना अधूरा घोंसला।