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अधूरा मिलन / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
सांझ
तड़प है दिन की
वह रात से मिलन चाहता है
इसलिए रात की देह
थोड़ी सी ले लेता है।
भोर
समर्पण है रात का
वह अपनी देह का एक हिस्सा
दिन के लिए छोड़ जाती है।
सदियों से
दिन और रात
कभी नहीं मिल पाते पूरी तरह
वह अपनी तड़प
और अधूरे मिलन में
इंतहा खूबसूरत हो जाते हैं।