भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अधूरी इच्छाएं / चित्रा पंवार
Kavita Kosh से
जो अधूरी इच्छाएं
गांठ बनकर
रह जाती हैं
मन के किसी कौने में
दबी हुई
वही जन्मती हैं एक दिन
मां की कोख से बेटी बनकर।