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अधूरी चीज़ें तमाम. / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
अधूरी चीज़ें तमाम
दिखती हैं
किसी भी मोड़ पर.
करवटों में मेरी.
अधूरी नींद में.
हाथ जब लिखने लगता है कुछ,
जब उतर आती है रात.