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अनकही बात / गिरिजाकुमार माथुर
Kavita Kosh से
बोलते में
मुस्कराहट की कनी
रह गई गड़ कर
नहीं निकली अनी
खेल से
पल्ला जो उँगली पर कसा
मन लिपट कर रह गया
छूटा वहीं
बहुत पूछा
पर नहीं उत्तर मिला
हैं लजीले मौन
बातें अनगिनी
अर्थ हैं जितने
न उतने शब्द हैं
बहुत मीठी है
कहानी अनसुनी
ठीक कर लो
अलग माथे पर पड़ी
ठीक से
आती नहीं है चाँदनी
याद यह दिन रहे
चाहें दूर से
दूर ही से सही
आए रोशनी