भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनगढ़ कहानी जो पढ़ी है / रूचि भल्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दालों के नाम पर अरहर की याद आती है
शहरों के नाम पर इलाहाबाद
दोस्तों का जो ज़िक्र चले
नाम प्रज्ञा का आता है
वैसे तो चली आती है अलका की याद

अलका वही जिससे प्यार हो गया था
बीसवें साल में
यह सोलहवें साल का प्यार नहीं

वैसे प्यार पैंतालीसवें साल में भी हो जाता है
परिपक्व उम्र में भी फ़िसल जाता है पाँव
चोट का क्या किसी वक्त भी लग जाती है
मोहब्बत का ज़ख्म तो कभी भरता नहीं
जैसे भरती नहीं है समन्दर की प्यास
 
एक -दो -तीन
न न न
मैं गिन नहीं सकूँगी नदियों के नाम
नदियों के प्रेम की कहानी फ़िर सही

आज सिर्फ कविता लिखने का
ख़याल चला आया है
ख़याल का क्या
ख़याल तो चला जाता है
तोताराम कुम्हार के भी पास
गर्मियों के मौसम में उसे भी आती होगी मेरी याद
जब मटके सभी बिक जाते होंगे
रह जाता होगा एक शेष मेरे नाम का

जिसे वह बेचता नहीं था
जिसे मैं समझती थी प्रेम
वह पुण्य कमाता था
लोग प्यासे को पानी पिलाते हैं
वह दरिद्दर मुझे मटका थमाता था
एक अदद कमीज़ में साल
बिता देता था तोताराम

प्यार का क्या
प्यार तो उससे बयालीसवें साल में हो गया था
उसके हाथ के बने कुल्हड़ में चाय पीते हुए
हरबती से हो गया था मुझे चालीस में
बाजरे का उसका रोट खाते हुए
लौतिफा से पैंतीस में
फौजिला से तीस में

न न न
इससे पीछे नहीं जाऊँगी
अब तो आगे जाना है
चलते चले जाना है
आखिरी प्रेम की तलाश में