भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनजाने से प्यार जताना / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
अनजाने से प्यार जताना मुश्किल है।
जीवन में उसको अपनाना मुश्किल है।
जनता की आँखों में झोंके धूल जो,
उनको भी तो मज़े चखाना मुश्किल है।
छल, कपट, चतुराई सारे ‘खाई’ हैं,
इन पर भी छलांग लगाना मुश्किल है।
मुफ़्त पढ़ाई, मुफ़्त दवाई खोजेंगे वे,
आलसी से काम कराना मुश्किल है।
घर से बाहर इज़्ज़त ज़्यादा मिलती है,
अपने घर में इसे बचाना मुश्किल है।
‘प्रभात’ सफ़र में मेरे हमदम राही थे,
अब उनसे नज़रें चुराना मुश्किल है।