भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनजान शहर बाटे, अनजान सफर बाटे / मनोज भावुक
Kavita Kosh से
अनजान शहर बाटे, अनजान सफर बाटे
मजबूर मुसाफिर बा, चलहीं के डहर बाटे
हर मोड़ पे आके हम गुमराह भले भइनी
पर आस मरल नइखे, मंजिल प नजर बाटे
तब गैर रहे लूटत, अब आपने लूटत बा
एह देश में सदियन से, लूटे के लहर बाटे
मतलब के निकलते ही बर्ताव बदल जाता
फइलत बा फिजा में अब कइसन दो जहर बाटे
भाई के मुसीबत में, भाई ही सटत नइखे
एह खून के रिश्ता में, कइसन ई कसर बाटे
'भावुक' हो ई जिनिगी तऽ, पतझार के पतई हऽ
ई काल्ह रही कहँवाँ, केकरा ई खबर बाटे