अनभुआर / मनोज शांडिल्य
हमर टेबुल पर सैंत क’ राखल अछि
कतेको रास पोथी-किताब
आ एहि पोथीक साम्राज्य मे
एमहर-ओमहर फेकायल
छींटल-छिड़िआयल
कागतक किछु एकसरुआ पन्ना
ई एकसरुआ पन्ना सभ
जेना देशक बिसारल ओ जनसमूह
जे करैत अछि समाजक निर्माण
ओरिओबैत अछि ओकरा लेल दालि रोटी
घर-दुआरि, खेत-पथार
कल-कारखाना आ इस्कुल-अस्पताल
आ बिसारि देल जाइत अछि
ओही सुभ्यस्त समाज सँ
रहि जाइत अछि उड़ियाइत अनभुआर
नहि भ’ पबैत अछि किताब
हम चुआबय लगैत छी घड़ियाली नोर
भ’ क’ माँजल अभिनेता सन विभोर
हमर कृत्रिम अश्रुपात देखि
भभा क’ हँसैत अछि ओ पन्ना सभ
फड़फडाइत अबैत अछि आँखिक सोझा
अभरैत अछि किछु शब्द –
‘हमर होयबे मे अछि हमर पूर्णता
हमर सम्पूर्णते अछि हमर अस्तित्व’
आब देखि रहल छी हम स्पष्ट
किछु होयबाक अभिमान
पूर्णताक आह्लाद
अस्तित्वक संतुष्टि
हँसि रहल अछि पन्ना सभ उन्मुक्त
फड़फड़ाइए नहि, नाचि रहल अछि अनासक्त..