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अनसुना सुनने को मैं / संजय अलंग
Kavita Kosh से
सब छूटेगा यहाँ
कुछ साथ न जाएगा
होगा साथ सदा,
मुस्कुराहट के प्रकाश का
गहरे गव्हरों में होगा ग़म और दुःख जब
अनसुना सुनने को होऊँगा मैं
उस काल में
जहाँ फेंक दिया जाता है दुःख
अख़बार की तरह पढ़कर
सुनता हूँ क्यों मैं अनसुना
होना क्यों चाहता हूँ दुःख के लिए आवाज़
कोई नहीं चाहता किसी को
अनसुना और अनसुना हो जाता है
छोटी बच्ची की प्यास
फेंक दी जाती है, इच्छाओं द्वारा
पिघलती आँख भी
तुम्हे नहीं खोल पाती
आना होगा आगे, काले काजल को हटा
कष्ट की साँस में भी खोलनी होंगी आँखें
विद्वता पर न छोड़ें उड़ान की पाँखें