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अनसुनी आवाज / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
ओतना ही गुंजलोॅ गेलै
ऊ आवाज
जतनां कि अनसुनोॅ करलोॅ गेलै
हर दफा बड़ी दिक्कतोॅ सें
उठैलोॅ गेलै आवाज यहाँ
लेकिन अनसुनोॅ करी देलोॅ गेलै
हाँ, जानी-बुझी केॅ
अनसुनोॅ करलोॅ गेलै
ई आवाज
जे सुनाय पड़ै छै
अक्सर दूरोॅ सें ही।