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अनाम यात्राएँ / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
हाँ,
तुम्हीं हो:
हृदय में लिए हुए
सम्भावनाएँ-असम्भावनाएँ अपनी
नई-नई युक्तियाँ सुझाते हुए,
हँसते-गाते, उन्मादी जगत के
क्रिया कलापों को समझाते हुए।
समझ लेती हूँ तुम्हें
नयेपन से, अपनेपन से,
दिए गए अनगिनत सुझावों में,
मुख पर छाये
उलझे हुए तुम्हारे भावों में।
क्या समझा भी
पाती हूँ तुम्हें मैं ?
नए अर्थो में, सुन्दर पक्तियों में,
शब्दों की कौंधायी आँखों मंे,
शब्दों की देह पर
गिरती-उठती मात्राओं में,
सरल भाषाओं में,
यह रहस्य-
जीवन की अनाम यात्राओं का।