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अनायास ही इस जीवन में / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
अनायास ही इस जीवन में जाने क्या-क्या हो जाता है।
जाने क्या-क्या मिल जाता है जाने क्या-क्या खो जाता है।
सीधे रस्ते चलते-चलते
अनायास हम मुड़ जाते हैं।
किससे जुड़ने का मन होता
लेकिन किससे जुड़ जाते हैं।
कोई फूल बिछाता पथ में कोई काँटे बो जाता है।
अनायास ही इस जीवन में जाने क्या-क्या हो जाता है।
अनायास ही कोई अपना
अपने ऊपर तन जाता है।
और पराया लगने वाला
बिलकुल अपना बन जाता है।
कोई पार लगा देता है कोई नाव डुबो जाता है।
अनायास ही इस जीवन में जाने क्या-क्या हो जाता है।
वैसे अनायास क्या होता
वो ही सब कर्ता-धर्ता है।
हम सब चौसर की गोटें हैं
पाँसे वह फेंका करता है।
वो ही ख़ुशियाँ देता हमको वह ही आँख भिगो जाता है।
अनायास ही इस जीवन में जाने क्या-क्या हो जाता है।