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अनाहत / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
चक्रवातों के
थपेड़ों से घिरा
इंसान,
- बन गया चट्टान !
- बन गया चट्टान !
जूझता है
बार-बार,
बुलन्द हिम्मत से
- सुदृढ़
- आयत्त आस्थावान !
- सुदृढ़
कर रहा पहचान
घातों से
प्रहारों से
- गरजती
- अग्नि-धारों से,
- नहीं हैरान।
- गरजती
बढ़ता गया
अन्तिम विजय
- विश्वास,
- विश्वास,
गढ़ने
नया इतिहास।
अपराजेय
जीवन का —
- अदम्य
- प्रबल
- अदम्य
मनोबल,
फूँकता जंगल,
बनाता
ज़िन्दगी का
नव धरातल।