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अना की मोहनी सूरत बिगाड़ देती है / मुनव्वर राना
Kavita Kosh से
अना<ref>आत्म-सम्मान</ref>की मोहनी<ref>मोहक, मोहिनी</ref>सूरत बिगाड़ देती है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है
किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत<ref>शासन</ref>बिगाड़ देती है
इसीलिए तो मैं शोहरत<ref>प्रसिद्धि</ref>से बच के चलता हूँ
शरीफ़ लोगों को औरत बिगाड़ देती है
शब्दार्थ
<references/>