भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनिद्राग्रस्त / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / माया एंजलो
Kavita Kosh से
होती है कुछ रातें
जब
नींद करती संकोच
रहती दूर,
करती उपेक्षा।
इसे अपने अधीन करने की
समस्त चालाक कोशिशें
मेरी
रह जाती हैं व्यर्थ
चोटिल गर्व की तरह,
होतीं ये और भी कष्टप्रद।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’