अनिवार्य प्रश्न-सा / कविता भट्ट
पहाड़ियों से बहती बयार;
मेरे तन-मन को छूकर
संगीत के साथ बहती है;
चढ़ाई-उतराई की पीड़ा को
कर्णप्रिय स्वरलहरी में बदलने हेतु
सक्षम है; अतः मेरे लिए विशेष है।
मेरे तथाकथित घर की
खिड़की से दिखती है
एक नदी, जिसकी मृदु-तरंगित लहरें
कठोर सीने वाले पत्थरों पर
संघर्ष से सफलता लिखने हेतु
सक्षम हैं; अतः मेरे लिए विशेष है।
और हाँ दिखता है एक पीपल भी
दूर पर्वत की चोटी पर खड़ा
कर्मयोगी-सा तपस्यारत
सबके बीच रहकर भी है विरक्त
बिना प्रतिदान चाहे, प्राणवायु बाँटने हेतु
सक्षम है; अतः मेरे लिए विशेष है।
बहती बयार, नदी की लहरों
और कभी-कभी पीपल बन
परीक्षापत्र के प्रथम अनिवार्य प्रश्न-सा
एक प्रश्न, जो उठता ही रहता है
प्रायः मेरे व्याकुल मन में;
'हम' विशेष क्यों नहीं हो सके?