भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुकंपा में सर्विस करती परवीन बानो / नासिर अहमद सिकंदर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी वह यानि कि परवीन बानो
फाइलों के बीच घिरी है
फाइलों में जमी हैं अभी उसकी आँखें

यह संयोग ही है--
मैं उसे बचपन से जानता हूँ
क्योंकि उसके अब्बू
मेरे चचा थे
और वह मेरे लिए
गुड्डी नाम की ऎसी बच्ची
जो चहरदीवारी में घिरी
परवरिश पाती
परवरिश ऎसी कि कोई घर आए
दरवाज़ा खटखटाए
तो वह दरवाज़ा खोलने के बजाए
भीतर की ओर आए
क़ायदा ही था घर का कुछ ऎसा
प्रगतिशीलता को परम्परा ने ढँक लिया था मानो
ऎसे में गुड्डी यानि परवीन बानो
अपनी जिद के कारण ही
बी०ए० कर पाई

समय कभी एक-सा नहीं रहता
और आदमी जो सोचता है
होता भी नहीं
कभी-कभी वैसा
अब देखिए कि
मेरे चचा यानि परवीन के अब्बू
कहाँ तो चला रहे थे उसके ब्याह की बात
और हादसा ऎसा घटा
कि नहीं रहे वे ही

पहाड़ टूट पड़ा था तब
पाँच लोगों का परिवार
परवीन सबसे बड़ी
और परिवार की ज़िम्मेदारी निभाने के एवज
अनुकंपा में सर्विस मिली
परवीन को

ऎसे समय में
अपने समय कॊ पहचानती
बाहर निकली परवीन बानो

अभी वह फाइलों के बीच घिरी है
फाइलों में जमी हैं अभी उसकी आँखें
जब फाइलों से उठें
तो देखना उन आँखों में
उसकी ज़िम्मेदारियाँ
उसका परिवार ।