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अनुछई ऊँचाइयाँ / पद्मजा शर्मा

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रह जाता है अनलिखा बहुत कुछ
लिखने के बाद भी

कहने के बाद भी रह जाता है
अनकहा बहुत कुछ

होती हैं कई राहें अनजानी
चलने के बाद भी

ऊँचाइयाँ अनछुई छूने के बाद भी

बहुत कुछ जानने के बाद भी
बाकी रह जाता है जानना

रोने के बाद भी बच जाती है जैसे आँखों में नमी

बहुत कुछ मिलने के बाद भी
ढूँढ़ता रहता है तमाम उम्र कोई एक कन्धा
पर मिलता नहीं।