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अनुत्क्रमणीय इतिहास / सर्जिओ इन्फेंते / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
अंतहीन बेड़ियाँ, पराजित कुंडलियाँ
रज्जु के कलंक बढ़ाता मध्यकालीन पारा
विगत दिनों में
ऐंठी जाती रस्सियाँ
मेरे इस स्कंध पर जो जानता है
कि रीढ़ की हड्डियों को
विपरीत दिशा में घुमाता
एक नियंत्रण निरंतर मौजूद है।
पीड़ादायक शिकंजे में कसा बह रहा हूँ मैं
अधःप्रवाह की शून्यता
ले जा रही है शहीदी मृत्यु की ओर,
शरीरी पोत की पसलियों की हर कराह
उत्तर में सुनती है
रात में चर्म पर चंचु प्रहार रत
नाक्षत्रिक चिड़ियों की काँव-काँव...
पीड़ादायक शिकंजे में कसा मैं
निहार रहा हूँ ब्रह्मांड
मै स्वीकारता हूँ उच्च सत्ता से
कि यह मेरा अंत है,
हर प्रश्नकर्ता को देता हूँ यही जवाब
कि यह मेरा अंत है।
वह देखो, आकाशीय मार्ग पर
गमन करते अंतरिक्ष यात्री।