भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुनय / रामावतार यादव 'शक्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझ से रूठ छिपे हो जाकर दूर क्यों?
बने बदल कर जाने इतने क्रूर क्यों!
कहाँ तुम्हें मैं पाऊँ, पता न पा रहा!
जीवन उलझन में पड़कर घबरा रहा!

कुछ न सुहाता, लगा तुम्हीं में ध्यान है।
तुम से मिलने को आकुल यह प्राण है।
-1928 ई.