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अनुपम मारा गया, क्यों? / कौशल किशोर

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वह अनुपम था
सुन्दर, सुशील व सुदर्शन
हम सबकी गोद में खेला
पइया पइया घुसकते ठुसकते
हमारी अंगुली पकड़
कंधे पर चढ़
हमारे सामने बड़ा हुआ
उसके लिए सब अंकल थे
और वह हमारे लिए अनुपम

'न उधो से लेना, न माधो को देना'
बस, अपने काम से काम
फिर, क्यों कर दी गई
उसकी ज़िन्दगी तमाम?

उसने बी टेक किया
पर संतोष कहाँ
नजरें तो किसी बड़ी ऊँंचाई पर थीं
और इस चाहत में
सब छोड़ छाड़
वह आ गया इलाहाबाद
अभी और पढ़ना चाहता था
आगे बढ़ना चाहता था

यह कोई सीरियल बलास्ट नहीं था
पर उससे कम भी नहीं था
कभी महाप्राण निराला ने इसी इलाहाबाद के पथ पर
पत्थर तोड़ती स्त्री को देख कविता लिखी थी
ऐसे ही किसी पथ पर वह पड़ा था निर्जीव

जाड़े की भयानक रात थी
चारो तरफ फैला था उसका गरम खून
पेट फाड़ बाहर आ गई थीं अतडि़याँ
माँ बेहोश
पिता किंकर्तव्यविमूढ
़उनके सपनों के परखचे उड़ गये थे
बहन, दोस्त, सब छटपटाते
वहाँ कुछ भी नहीं बचा था
चिडि़या उड़ चुकी थी

महीना भर पहले घर में शहनाई बजी थी
वह दुल्हा बन घोड़े पर चढा था
सब नाचे थे
जो नहीं जानते थे
उनने भी हवा में हाथ लहराये थे
पैर और कमर हिलाये थे
बस, महीना भर पहले
घर में खुशियाँ आई थी

वह खूँटे से बँधा था
या उसके खूँटे से बाँध दी गई थी
बताते है
वह दो प्रेमियों की जुबान में
कंकड़ी की तरह जा फँंसा था
चर्चा गर्म थी, इतनी गर्म
कि कुछ भी सेंकी जा सकती थी
इसी बीच एक खबर उछली
कि हत्यारे भोपाल से आये थे

रहस्य, उत्सुकता
एक कान से दूसरे कान
फुसफुसाती, तैरती बातें
मुँह जितने, उतनी बातें
और इन बातों का क्या
जो बिना पैर के चलती हैं
संचार माध्यमों से ज़्यादा द्रुतगति से
अनियंत्रित फैलती हैं

कोई सुराग तो मिले?

पूछ-ताछ के घोड़े दौड़ रहे थे
अपने वृत में हिनहिना रहे थे
'सावधान इंडिया' का कैमरा तेजी से घूम रहा था
'क्राइम पेट्रल' की पूरी टीम जुटी थी
लूट मची थी
ऐंकर प्रसन्न थे
अगले एपीसोड के लिए
उनके हाथ लगी थी एक नई स्टोरी

टीवी पर ऐंकर कह रहा था
हम... फिर हाजिर होंगे अगले सप्ताह
एक नई ताजातरीन कहानी के साथ
बस, हफ्ता भर इंतजार कीजिए
सावधान रहिए
सुरक्षित और सतर्क

पर वह नहीं बता पाता
कि कैसे रहा जाय सुरक्षित और सतर्क
जब हत्यारों से घिर गये हैं हम
वे पहुँच गये हैं घरों में
रहते हैं हमारे बीच
बसते हैं हमारे अन्दर...