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अनुपस्थिति / सुन्दरचन्द ठाकुर
Kavita Kosh से
एक चिड़िया दृश्य से बाहर उड़ी है अभी-अभी
यहाँ सिर्फ़ उसकी अनुपस्थिति रह गई है
जहाँ थी वह अपने दो पंजों पर फुदकती हुई
वहीं उसकी कूक थी दृश्य को भरती हुई
उसके आकार की परछाईं थी
उसी की तरह हिलती-डुलती चोंच रगड़ती
वह चिड़िया दृश्य से उड़कर जा चुकी है बाहर
अब वही किसी दूसरे दृश्य को भर रही होगी
जहाँ उसकी परछाईं थी घास पर
उतना हिस्सा चमक रहा है धूप में
उसकी कूक हवा की जिस पार्ट पर सवार तैरती थी
अब वहां एक चुप्पी उतर रही है
दृश्य से जा चुकी वह चिड़िया
अभी बची हुई है वहां
उसके पंजों के नीचे दबी घास
खुल रही है धीरे-धीरे
वातावरण में
उसकी कूक की अनुपस्थिति मौजूद है।