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अनुपस्थित / पल्लवी त्रिवेदी
Kavita Kosh से
मैंने उसे बोलते सुना है
उसकी अनुपस्थिति में
जबकि उपस्थित होते हुए वह अक्सर खामोश ही रहा है
उपस्थित देह बड़ी मामूली बात होती है
अनुपस्थिति में आदमी ज्यादा ठोस तरीकों से उपस्थित होता है
अनुपस्थिति में सुने जा सकते हैं उन शब्दों के अर्थ जो जल्दबाज़ी में बोल भर दिए गए
पढ़े जा सकते हैं इत्मीनान से चेहरे के वो भाव जो उसके जाने के बाद मेज पर किताब की तरह छूटे रह गए
महसूस की जा सकती है स्मृतियों की संतरे के छिलके-सी गंध देर तक
उसे भी यूं ही ज्यादा देखा,ज्यादा जाना, ज्यादा सुना मैंने
साकार उपस्थिति का एक दिन देता है कई दिन निराकार उपस्थिति के
यूं ही आते रहा करो दोस्त जाते रहने के लिए