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अनुपात / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
वे रहती हैं
दिन भर व्यस्त
नापती-तौलती हैं
अनुपात
दाल और पानी का
सब्जी और मसाले का
सर्फ और कपड़ों का
झाड़ू और पोछे का
सिलेण्डर, मशीन, पानी की लाइनें
और अपनी बारी का
बच्चों और स्कूल का
गृहस्थी और रिश्ते नातों का
और इस
आनुपातिक दिनचर्या में
भूल जाती हैं
कमर और दर्द का
थकान और आराम का
उम्र और कुंठाओं का
बोझ और क्षमता का अनुपात