भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुपात / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज




ज़िन्दगी

ज़िन्दगी है

अगर है वहाँ ढेर सारा क्षार ।


मगर,

क्या कहना ज़िन्दगी का,

अगर वहाँ हो ढेर सारा क्षार

और थोड़ा-सा तेज़ाब ।