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अनुभव-सिद्ध / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
तय है कि
काली रात गुज़रेगी,
भयावह रात गुज़रेगी !
असफल रहेगा
हर घात का आघात,
पराजित रात गुज़रेगी !
यक़ीनन हम
मुक्त होंगे
त्रासदायी स्याह घेरे से,
रू-ब-रू होंगे
स्वर्णिम सबेरे से,
अरुणिम सबेरे से !
तय है
अंधेरे पर
उजाले की विजय
तय है !
पक्षी चहचहाएंगे,
मानव प्रभाती गान गाएंगे !
उतरेंगी
गगन से सूर्य-किरणें
नृत्य की लय पर,
धवल मुसकान भर - भर !
तय है कि
संघातक कठिन दु:सह अंधेरी
रात गुज़रेगी !
कुचक्रों से घिरा आकाश
बिफरेगा,
आहत ज़िन्दगी इंसान की
सँवरेगी !