भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुभव - २ / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर कहानियां कहने वाला
हमेशा ऊंचे पत्थर पर बैठना पसंद करता है
और आज मुझे जो भी कहना पड़ता है
सब कुछ बराबरी पर रहकर
फिर भी सुनने वाला कोई नहीं
सभी अपने अनुभवों का सम्राट बनना चाहते हैं
दूसरों के अनुभव जैसे उन्हें झुका देंगे
ये पहाड़ कभी भी टस से मस नहीं होंगे
इन पर चाहे पेड़ बैठे या कुहासा या बर्फ
बाकी चीजों को ही इनके इर्द-गिर्द घूमते रहना होगा
फिर भी पहाड़ तो पहाड़ ही है, कोई नाव नहीं
और हम अपनी तुलना नाव से करें तो क्या बुरा
जीवन की स्थिरता से तितली अच्छी है
पूरी स्वतंत्रता से दोनों पंख खोले हुए
रास्ते में उडऩे में कोई अड़चन नहीं
मधुमक्खियों का अनुभव भी छोटा सा
इतना भर कि आज उन्होंने कितना मधु एकत्र किया है
फिर भी यह हमारे लिए कितने काम का है।