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अनुभूति यह भी / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
मैं तुम्हें समझता हूँ
और
तुम
मुझे
फरक इत्ता कि
तुम तुम हो
और
मैं... मैं...
हवा बहने लगी
अनायास
अरे
पत्तियां भी
झरने लगी
सायास