अनुभूति / दीप्ति गुप्ता
एक विलक्षण अनुभूति
सृष्टि नजर आ रही अनोखी-अनूठी
निरभ्र, स्वच्छ, उजला आकाश
इच्छित, आराधित पूजित, प्रार्थित
पूर्ण जीवन की अभिलाष
सूर्य समाया नयनों में आज....!
पुष्प, पल्लव, झरता निर्झर,
पुलकित करता मन को आज
मंद-मंद, सुगन्ध बयार कहता
जीवन परिवर्तित आज
सूर्य समाया नयनों में आज....!
कल-कल करता सरिता का जल
कितना चंचल, कितना शीतल
धवल कौमुदी कर सम्मोहित
चहुँ दिशि रचती एक इन्द्रजाल
सूर्य समाया नयनों में आज....!
एक कामना मन में आती
होए भविष्य वर्तमान का साथी
शाश्वत, मधुर, मदिर आभास
पतझड़ बना बसन्त बहार
सूर्य समाया नयनों में आज....!
तमापूरित, मलिन, अशुचितम
कण- कण लघु जीवन के क्षण
सहसा बने नवल उल्लास
हुआ इन्द्रधनुष सुन्दर साकार
सूर्य समाया नयनों में आज....!
विधि ने रचा स्वर्ग धरती पर
कितना सुन्दर, कितना अभिनव
कितना सुन्दर, कितना अभिनव
सार्थक है - ‘तत् त्वमसि’ आज
सूर्य समाया नयनों में आज....!
आँख मूँद देखा मैंने
अन्तरतम में मधुर उजास
सत्य, शिव, सुन्दर का बन्धन
धोता कलुष, मिटा अवसाद
सूर्य समाया नयनों में आज....!
नहीं चकित होऊँगी यदि,
कहे इसे कोई सपना
सपना ही सही, लेकिन
है तो मेरा अपना...
वृक्षों से झड़ते पुहुप लाज
सूर्य समाया नयनों में आज....!