भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुभूति / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1-हे मेरे प्राणों के प्राण!
तू मेरे हर दुख का त्राण।
तुझसे मेरे तीनों लोक
तुम हर लेते मेरे शोक।
कभी न होना मुझसे दूर
तुम मेरे नयनों का नूर।
( 25/8/2023)
2
ईर्ष्या की लू लपट से तन जला,मन भी जला।
राख केवल अब बची किरदार ऐसे हो गए ।
22/8/2023