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अनुभूति / शशि पाधा

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नील गगन की नील मणि सी
ऊषा की अरुणाई सी
नव कलियों के मृदुल हास सी
सावन की पुरवाई सी

दर्पण देख सके न रूप
थोड़ी छाया थोड़ी धूप
अपनी तो पहचान यही है
और मेरा कोई नाम नहीं है।

रेखाओं से घिरी नहीं मैं
न कोई सीमा न कोई बाधा
आकारों में बँधी नहीं मैं
सूर्य ¬¬-चाँद यूँ आधा -आधा

खुशबू के संग उड़ती फिरती
कोई मुझको रोक न पाए
नदिया की धारा संग बहती
कोई मुझको बाँध न पाए

जहाँ चलूँ मैं , पंथ वही है
अपनी तो पहचान यही है।
और मेरा कोई नाम नहीं है।

नीले अम्बर के आँगन में
पंख बिना उड़ जाऊँ मैं
इन्द्र धनु की बाँध के डोरी
बदली में मिल जाऊँ मैं

पवन जो छेड़े राग रागिनी
मन के तार बजाऊँ मैं
मन की भाषा पढ़ ले कोई
नि:स्वर गीत सुनाऊँ मैं

जो भी गाऊँ राग वही है
अपनी तो पहचान यही है।
और मेरा कोई नाम नहीं है।

पर्वत झरने भाई बाँधव
नदिया बगिया सखि सहेली
दूर क्षितिज है घर की देहरी्
रूप मेरा अनबूझ पहेली

रेत कणों का शीत बिछौना
शशिकिरणों की ओढ़ूँ चादर
चंचल लहरें प्राण स्पन्दन
विचरण को है गहरा सागर

जहाँ भी जाऊँ नीड़ वही है
अपनी तो पहचान यही है
और मेरा कोई नाम नहीं है।