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अनुरोध / अज्ञेय

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अभी नहीं-क्षण भर रुक जाओ, महफिल के सुनने वालो!
मत संचित हो कोसो, हे संगीत सुमन चुनने वालो!
नहीं मूक होगी यह वाणी, भंग न होगी तान-
टूट गयी यदि वीणा तो भी झनक उठेंगे प्राण!

दिल्ली जेल, दिसम्बर, 1932