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अनोखा ये माया का चक्कर चला है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अनोखा ये माया का चक्कर चला है ।
उलझता ही हर जीव इसमें रहा है।।
अकेला ही इंसान आता है जग में
अकेले ही दुनियाँ से जाना पड़ा है।।
यहाँ पर अमर होकर आया न कोई
जो आया यहाँ पर वो वापस गया है।।
उसे मौत आगोश में ले ही लेगी
जमाने में जो आज पैदा हुआ है।।
न अभिमान कर आज वैभव मिला तो
गमनशील वैभव हुआ कब सगा है।।
न आँसू बहा तू अगर गम है पाया
ये दुख तो जमाने में सबको मिला है।।
न घबरा भँवर से चलाये जा चप्पू
ठहर मत अगर आ रहा जलजला है।।