भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनोखा ये माया का चक्कर चला है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनोखा ये माया का चक्कर चला है ।
उलझता ही हर जीव इसमें रहा है।।

अकेला ही इंसान आता है जग में
अकेले ही दुनियाँ से जाना पड़ा है।।

यहाँ पर अमर होकर आया न कोई
जो आया यहाँ पर वो वापस गया है।।

उसे मौत आगोश में ले ही लेगी
जमाने में जो आज पैदा हुआ है।।

न अभिमान कर आज वैभव मिला तो
गमनशील वैभव हुआ कब सगा है।।

न आँसू बहा तू अगर गम है पाया
ये दुख तो जमाने में सबको मिला है।।

न घबरा भँवर से चलाये जा चप्पू
ठहर मत अगर आ रहा जलजला है।।