अन्तराल / विजय कुमार
इधर वायरलैस पुलिस-वैन
नीले रंग
और पीली पट्टियों वाले वाटर कैनन
यातायात बन्द करने की सूचनाएँ
फ़ाइबर की ढाल, आँसू गैस के गोले
डण्डे, राइफ़लें और लोहे के टोप थे
जिनमें उनके आधे चेहरे छिप गए थे
और
किसी अज्ञात जगह से आने वाले आदेशों की प्रतीक्षा थी
उधर झण्डे, बन्द दुकानों के शटर
तख़्ते, नारे, पोस्टर
तमतमाए चेहरे, आँखों में भूख का जमाव
फटी चप्पलें
और संयम का होता हुआ अन्त था
मैं किधर था?
इससे पहले कि कुछ घटे
मैं किधर था?
अपने आप से पूछा मैंने
मैं किधर था ?
मैं कॉपी और पेंसिल लेकर
सड़क के बीचोंबीच बैठ गया
मैंने पेड़ों को देखा
धूप को देखा
उड़ते पक्षियों को देखा
मैले पैरों में टूटी चप्पलों को देखा
भूखी औरतों की गोद में छोटे-छोटे शिशुओं को देखा
और उन दीवारों को देखा
जिन पर बस्ती के बच्चों ने
कोयले से आड़ी-टेढ़ी लकीरें खींची हुई थी
वह चित्रकारी थी
जहाँ अभी ख़ून के छींटे नहीं पड़े थे ।