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अन्तर्ध्वन्सक / महेन्द्र भटनागर

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कौन है,

वह कौन है ?

जो --

हमारे स्वप्नों में

ख़लल डालता है,

हमारे

बनाये-सजाये

चित्रों को विकृत कर

बदल डालता है,

उनकी विराटता को

बौना कर देता है,

उनकी उन्मुक्तता में

कुण्ठा भर देता है !


वह कौन है ?

वह दुस्साहसी कौन है ?

जो --

हर संगत लकीर को

जगह-जगह से तोड़ कर

असंगत लिबास पहना देता है,


परिवेश की अर्थवत्ता छीन कर

अनर्गल वैशिष्ट्य से गहना देता है !

सही परिप्रेक्ष्य से

विस्थापित कर

हास्यास्पद भूमिकाओं की

चितकबरी प्लास्टर झड़ी

दीवारों पर

उल्टा टाँग देता है !


हमारे विश्वासों की

जीवन्त प्रतिमाओं को

खण्डित कर

कोलतारी स्वाँग देता है !


यह

किसका अट्टहास है ?

चारों ओर लहराते

नागफाँस हैं !


पर, सावधान !

मैं

इतिहास को दोहराने नहीं दूँगा,

आतताइयों को

निरीह लाशों को रौंदते

विजय-गान गाने नहीं दूँगा !


इन स्वप्नों की

इन चित्रों की

गत्यात्मकता,

अनुभूत-सिद्ध वास्तविकता


दूर-पास फैले

असंख्य-अदृश्य

भेदियों के जालों को

तोड़ेगी,

मानव-मानव के बीच

पहली बार

सच्चा रिश्ता जोड़ेगी !