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अन्तर के भाव सजग होंगे / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
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अन्तर के भाव सजग होंगे
तुम रहो नयन-पथ पर मेरे
तेरी गुरूता में यह मेरी
लघुता पल में खो जायेगी
जीवन संस्कृत हो जायेगा
साधना सफल हो जायेगी
फिर तुमसे नहीं विलग होंगे
तुम रहो स्मरण-पथ पर मेरे
अन्तर के मैल मिटाने को
युग युग से आकुल मन मेरा
तेरे शुभ दर्शन पाने को
है उत्सुक आज नयन मेरा
आलोकित मेरे मग होंगे
तुम रहो श्रवण-पथ पर मेरे
अपने को आप भुला गा
तेरे अनुभव का बल पाकर
मेरा विश्वास अटल होगा
अपने पर, तुम पर, आशा पर
दृढ मेरे दोनों पग होंगे
तुम रहो मरण-पथ पर मेरे
अन्तर के भाव सजग होंगे
तुम रहो नयन पथ पर मेरे