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अन्तस मन में शोर हुआ / सुरजीत मान जलईया सिंह

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तुम ही मेरे गीत गज़ल हो
तुम हो मेरी जान प्रिये

सर्व प्रथम जब तुम देखीं थी
अन्तस मन में शोर हुआ
अहसासो से छुआ तुम्हें तब
सागर जैसा जोर हुआ
आखों में हरदम रहता है
अब तेरा प्रतिमान प्रिये
तुम ही मेरे गीत गज़ल हो
तुम हो मेरी जान प्रिये

ऐसे लगते होंठ तुम्हारे
जैसे गंगा की धारा
मस्तिष्क तुम्हारा ऐसा चमके
जैसे तुम हो ध्रुव तारा
तुम जीवन के सरल शब्द हो
तुम ही हो अभिमान प्रिये
तुम ही मेरे गीत गज़ल हो
तुम हो मेरी जान प्रिये

रजत चाँदनी जैसा तन है
मन है वृन्दावन जैसा
केश तुम्हारे बादल जैसे
पोर पोर उपवन जैसा
क्यों न खुद पर इठलाऊँ मैं
मेरी तुम हो आन प्रिये
तुम ही मेरे गीत गज़ल हो
तुम हो मेरी जान प्रिये!