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अन्तहीन नाटक / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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आज भी
बीते कल का ही नाटक होगा
लागातार सीटी बजने
और शोर होने के बाद
अब पर्दा उठा है
लोग किसी भुतहा मकान की तरह शांत हैं

मंच पर इन्द्र हैं
और विश्वामित्र क्रोध में
क्या-क्या कहे जा रहे हैं
देवमुख और ऋषिमुख से हो रहे
गालियों का प्रयोग जारी है

दृश्य बदले, शैव्या बेची गई
धार्मिक नगर के एक धनवान ने
खरीदी है
दक्षिणा चुकाने के लिये
राजा डोम के घर बिकेंगे

सिंहासन पर
विश्वामित्र ऊँघ रहे हैं
आदेश की प्रतीक्षा में
सभाषद भी थककर सो रहे हैं
इधर दृश्य परिवर्त्तन के लिये
पेक्षागृह में प्रेक्षकों का शोर जारी है।