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अन्तिम प्रणाम / प्रतिभा सक्सेना

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कुछ शेष रह गया अभी बताने को!
पर क्या?
कवि- ऋषि करते विचार बैठे।
लगता है कथा अधूरी है अब भी,
जानकी न आई छोड़ गई ऐसे!

द्वार की सँध में अटका-सा कुछ था,
बन्द जब ऋषि ने किया,
तभी नीचे आ गिरा
एक टुकडा भुज-पत्र!
अक्षरों में कुछ लिखा।
उन्होने बढ़ हाथों में लिया!

पढे वे शब्द,
चकित स्तब्ध!
देखते अपलक मूर्ति समान,!
दृष्टि धुँधली हो रही, अश्रु की बहती धार!-

"ऋषिवर, प्रणाम, जा रही आज!
आ गई एक दिन अनायास,
पुत्री बन कर पा गई तात!
दी छाँह, आस्था, मिली राह,
आ गया पंथ का अंत,
शेष कोई न काज!

ऋषि-कवि अशेष लो धन्यवाद,
माँगती क्षमा कर जोड़ पुत्रि!
जा रही न मेरा नाम-धाम!
चिर-बिदा तात, अन्तिम प्रणाम!