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अन्तिम विजय हमारी है / विमल राजस्थानी

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बढ़ता चल ओ वीर सिपाही ! गोली की परवाह न कर
न्योछावर हो रहा देश पर, झिझक न मरते, आह न भर
जन्मभूमि के लिए खून की अन्तिम बूँद निछावर है
जर्रा-जर्रा ‘बोस’ हिन्द का, कण-कण आज जवाहर है

यह पौरूष का देश, वीर की जय-गाथा इसकी थाती
यह शूरों की भूमि, यहाँ होती है गज भर की छाती
शीश-शून्य धड़ इसी देश के अन्तिम धड़कन तक जूझे
बेटों की गर्दन स्वदेश पर यहीं निछावर की जाती

एक ‘सिया’ के हेतु टूक हो गयी, सिहरकर, वसुन्धरा
एक ‘द्रौपदी’ हेतु कोटि नर-मुण्ड़ों से पट गयी धरा
साक्षी है इतिहास-सत्य औ’ स्वाभिमान की रक्षा में
सर्वप्रथम आया सदैव भारत विधना की कक्षा में

पत्नी के हित युद्ध-भूमि हमने थी लाशों से पाटी
कुरूक्षेत्र साक्षी, गवाह है लाल-लाल हल्दी-घाटी
अरे आज तो स्वयम् जननि का दूध हमें ललकार रहा
वृद्ध हिमालय सीना ताने कब से हमें पुकार रहा

यह सच है कि शांत हम इतने जितना ऊर्मि-हीन पानी
किन्तु फेंककर कंकड़ तुमने मौत बुला ली अभिमानी
यह लहरों का ज्वार हिमालय के मस्तक को चूमेगा
चक्रवाल में तू तिनके की तरह अहर्निश घूमेगा

मानसरोवर खौल रहा, कैलास टूटने वाला है
छू रही प्रत्यंचा कानों को, गांडीव छूटने वाला है
पांचजन्य बज रहा, सज रहे वीर पहन कर केसरिया
चल चुका सुदर्शन, पापों का यह घड़ा फूटने वाला है

हम मात्र अहिंसा के प्रतीक, संभ्रमित ! सुनहरा धोखा है
दुश्मन को तलवों तले मसलने का अंदाज अनोखा है
सच है-गौतम औ’ तीर्थंकर, गांधी को शीश झुकाते हैं
पर यह भी तो सच है कि आततायी को धूल चटाते हैं

है एक हाथ में कलम, दूसरे में प्रज्वलित होम-ज्वाला
रे ! यह सिद्धों को देश, यहाँ अन्तर-अन्तर में उजियाला
राणा सांगा औ’ वीर शिवा की भूमि बड़ी बलशाली है
हर बच्चा-बच्चा नीलकंठ, हर नारी दुर्गा-काली है

ओ दनुज ! हटा नापाक कदम, यह भूमि नहीं सह पायेगाी
हिमवान दरक कर टूटेगा, धरती नीचे धँस जायेगी
नटराज बजाते हैं डमरू, तांडव होने ही वाला है
खुल रही तीसरी आँख, तीव्र हो रही क्रोध की ज्वाला है

है रोम-रोम में वह्नि, देश की नस-नस में चिनगारी है
जननी का दूध पुकार रहा, मर-मिटने की तैयारी है
ओ कपटाचारी चीन ! सजग, खूंखार दरिन्दो ! सावधान
हम अमृत-पुत्र, हम मृत्युंज्जयी, रे ! अन्तिम विजय हमारी है