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अन्त एक ही / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
पंख सहलाते
पंख नोंचते
सय्यादों का मन / एक ही
एक ही धुन
एक ही प्रालब्ध
और फ़ाख़्ताओं का
अंत भी
एक ही.