भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्त की कविताएँ-4 / तेजी ग्रोवर
Kavita Kosh से
तट पर पहुँच गया है मछलीमार
कालिदास चौकन्ने हैं
मछली के पेट में नायिका की अंगूठी चौकन्नी है
नहीं हो पाना है व्यापार
जाओ, मछलीमार
स्मृति
इस बार नहीं आनी है जाल में
सृष्टि
इस बार नहीं लगनी है काँटे में