भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्धेरा हो रहा है / निकिफ़ोरॉस व्रेताकॉस / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्धेरा हो रहा है, खिड़कियाँ सारी बन्द हैं,
बत्ती जल रही है
और किराए के इस कमरे तक
सीमित है मेरी दुनिया ।

आओ,
मेरी किताबो !
आओ, मेरे पास
उन दोस्तों की तरह
जो उपहार लेकर आते हैं
लाते हैं रोटी, पानी, फल और दवाएँ ।

 पर एक दोस्त पूरी रात यहीं रहता है
तब भी, जब मेरी आँखें बन्द होती हैं
वह मेरा बदन कम्बल से ढकता है

मेरे लिए मेरा देवदूत है वह
जो सुनता है सिर नीचा किए
मेरे दिल की धड़कन ।

रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय