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अन्धेरे में भी कोहरा हो गया है / शलभ श्रीराम सिंह

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अन्धेरे में भी कोहरा हो गया है,
हमारा दर्द दोहरा हो गया है ।

सुनो ! आवाज़ मेरी सुन रहे हो,
सुना है वक़्त बहरा हो गया है ।

हमारा हाल यूँ तो ठीक ही है,
ज़रा-सा ज़ख़्म गहरा हो गया है ।

शलभ ! अब तो हमारे सोचने पर,
बड़ा संगीन पहरा हो गया है ।