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अन्धेरे से होकर सफ़र करते हुए / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
इतिहास के बेहद अन्धेरे दौरों में
प्यार को संघर्ष से,
जीने की चाहत को
मौत के जोखिमों से,
नींद को हाड़तोड़ श्रम से और
दिमाग़ की नसों के चिटखने की हद तक
तनाव देने वाले विचार-मन्थन से,
हृदय की कोमलता को
फ़ैसलाकुन होने की कठोरता से
अलगाकर देख पाना
असम्भव-सा होता है !