अन्हार में इंजोर / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
एगो रहे तो कहलो जाय
यहाँ तो सौंसे कुइयाँ में भाँग है
राँड़ तो कानिए रहलहे
सतभतरियो कहेहे कि फुटल माँग है
के केकरा से कहतै, के केकर सुनतै,
यहाँ तो एकसे एक बढ़ल गिरहकट्ट है
आपस में केकरी से कोय बोलै नय
घरों मंे कर रहल हें लठमलट्ठ है।
कजै कजै रहे तो छोड़लो जाय
इहाँ तो सौंसे समाजे घुनल है,
एगो गिरल के उठाल जातहल
इहाँ तो सौंसे टोला के लोग धुनल है
समाज हमरा फारैत रहल हे कुल्हाड़ी से
चीरैत रहल हें आरी से
दुहत्थो फाड़लक हें टेंगारी से
राह घेर देलक हें कटही तारी से
जे जतना राशन गटके हे
ऊ उतने भाषण में हाथ पटके हे
धक्कम धुक्की करको निकल गेल आगे
बाकी सब पीछे में लटके हे।
उधार खैते खैते दम आ गेल
अब तो सगरो अन्हार हे
एगो रहे तो टपलो जा सके हे
यहाँ तो राह में विपत के पहाड़ हे
मगर अंधार में इंजोर करे ले
सबके जुटको खड़ा होवे परत
जब करोड़-करोड़ तन जैबै
तब सो पचास हमरा की करत