भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपणे तन दी खबर ना कोई / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
अपणे तन दी खबर ना कोई,
साजन दी खबर लिआवे कौण?
इक जम्मदे इक मर मर जांदे,
एहो आवा गौण।
ना हमखाकी ना हम आतिश,
ना पाणी ना पौण।
कुप्पी दे विच्चरोड़ खड़कदा,
मूरख आखे बोले कौण।
बुल्ला साँई घट घट रविया,
ज्यों आटे विच्च लौण<ref>नमक</ref>।
साजन दी खबर लिआवे कौण?
शब्दार्थ
<references/>