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अपना-अपना मंदिर / रामदरश मिश्र

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धार्मिक त्योहार का दिन था
मंदिर रोशनी में नहा रहा था
लोग चले जा रहे थे मंदिर की ओर-
दीप-दान के लिए
उसे अपने दरवाजे़ पर चुपचाप खड़ा देख
पड़ोसी सेठ ने पूछा-
मंदिर नहीं चलना है?
आऊँगा-आऊँगा आप चलें
सेठ चले गये
वह कुछ देर बाद निकला
और अँधेरे में डूबे एक घर की देहरी पर
चुपचाप एक दीप रख आया।
-20.4.2015